What is EPS in Share Market | EPS क्या होता है? शेयर खरीदने से पहले ये ज़रूर जानें
1. परिचय
शेयर बाजार में निवेश करना जितना आकर्षक लगता है, उतना ही मुश्किल भी हो सकता है — खासकर तब जब आप किसी कंपनी के फंडामेंटल्स को समझे बिना सिर्फ दूसरों की सलाह पर पैसे लगा रहे हों। जब भी कोई शेयर खरीदने की बात होती है, एक शब्द अक्सर सुनने को मिलता है – EPS
लोग कहते हैं – इस कंपनी का EPS बहुत अच्छा है, EPS बढ़ रहा है, मतलब कंपनी Grow कर रही है। लेकिन सवाल यह उठता है कि EPS क्या होता है? क्या यह सच में इतना जरूरी है? और अगर हां, तो आपको EPS को देखकर क्या समझना चाहिए?
अक्सर नए निवेशक या ट्रेडिंग शुरू करने वाले लोग सिर्फ शेयर की कीमत देखकर निर्णय लेते हैं। लेकिन किसी कंपनी की असली ताकत उसके आर्थिक प्रदर्शन में छुपी होती है – और वही प्रदर्शन EPS के ज़रिए सामने आता है। अगर आप EPS को सही तरीके से समझ लेंते है, तो आप जान पाएंगे कि कौन सी कंपनी आपके निवेश के लायक है और कौन सी नहीं।
बहुत से लोग EPS को सिर्फ एक नंबर समझते हैं, लेकिन सच्चाई यह है कि यही नंबर आपको कंपनी की कमाई, ग्रोथ, शेयर वैल्यू और भविष्य की संभावनाओं का संकेत देता है। सवाल सिर्फ इतना नहीं है कि EPS कितना है – असली सवाल है कि इसे कैसे पढ़ें, कैसे समझें, और इससे निवेश के फैसले को कैसे बेहतर बनाएं।
अगर आप भी शेयर बाजार में सही फैसले लेना चाहते हैं और यह जानना चाहते हैं कि EPS के ज़रिए किसी भी कंपनी का असली मूल्यांकन कैसे किया जाता है, तो यह लेख आपके लिए है। यहां आपको EPS से जुड़ी हर जरूरी जानकारी मिलेगी – उसकी परिभाषा, गणना करने का तरीका, महत्व, और निवेश में इसका सही इस्तेमाल कैसे करें।
तो चलिए, शुरुआत करते हैं What is EPS in Share Market को समझने की, जिससे आप अपने हर निवेश को और भी समझदारी भरा और मुनाफे वाला बना सकें।
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2. What is EPS in Share Market – EPS क्या होता है?
EPS यानी Earnings Per Share, शेयर बाजार की भाषा में एक बेहद अहम Tool है जो किसी कंपनी की प्रति शेयर कमाई को दर्शाता है। यह हमें यह समझने में मदद करता है कि कंपनी ने एक तय समय (जैसे एक तिमाही या एक साल) में कुल कितना मुनाफा कमाया और अगर उस मुनाफे को सभी शेयरधारकों में बराबर बांटा जाए, तो हर एक शेयर पर कितना लाभ मिलेगा।

आसान शब्दों में समझें
मान लीजिए किसी कंपनी ने एक साल में ₹100 करोड़ का नेट प्रॉफिट कमाया। और उस कंपनी के कुल 10 करोड़ शेयर बाजार में ट्रेड हो रहे हैं।
तो उस कंपनी का EPS होगा
EPS = ₹100 करोड़ ÷ 10 करोड़ शेयर = ₹10 प्रति शेयर
इसका मतलब यह हुआ कि कंपनी ने अपने हर एक शेयर से ₹10 का मुनाफा कमाया है।
EPS क्यों होता है इतना महत्वपूर्ण?
EPS न सिर्फ ये बताता है कि कंपनी कितनी कमाई कर रही है, बल्कि ये भी दर्शाता है कि आपकी हिस्सेदारी उस कमाई में कितनी है। अगर आप किसी कंपनी के शेयर खरीदते हैं, तो आप उसके एक हिस्सेदार बन जाते हैं। EPS यह अनुमान लगाने में मदद करता है कि आपकी उस हिस्सेदारी की मौजूदा वैल्यू क्या है।
निवेशकों के लिए क्यों जरूरी है EPS को समझना?
- यह कंपनी की Profitability को मापने का सबसे आसान और प्रभावी तरीका है।
- EPS जितना अधिक होता है, उतना बेहतर कंपनी का प्रदर्शन माना जाता है।
- निवेशक अक्सर EPS के आधार पर तुलना करते हैं कि कौन-सी कंपनी ज़्यादा फायदेमंद हो सकती है।
- साथ ही यह P/E Ratio (Price to Earnings Ratio) जैसे अन्य महत्वपूर्ण मेट्रिक्स को भी निर्धारित करने में आधार बनता है।
EPS केवल एक आंकड़ा नहीं है – यह उस कंपनी की सच्चाई को दर्शाता है, जो दिखाता है कि सिर्फ रेवेन्यू नहीं, कंपनी असल में कितना पैसा बचा पा रही है और शेयरधारकों के लिए कितना मुनाफा कमा रही है।
3. EPS कैसे निकालते हैं?
EPS यानी Earnings Per Share को निकालने का तरीका बहुत ही सीधा और समझने में आसान होता है। यह एक ऐसा आंकड़ा है जो बताता है कि कंपनी ने अपने हर एक शेयर पर कितना मुनाफा कमाया है। EPS को निकालने के लिए हमें दो चीज़ों की ज़रूरत होती है — कंपनी का Net Profit और उसके बाजार में उपलब्ध कुल शेयरों की संख्या।
EPS निकालने का फॉर्मूला
EPS = Net Profit ÷ बाजार में उपलब्ध कुल शेयरों की संख्या
अब इसे एक उदाहरण से समझते हैं। मान लीजिए किसी कंपनी ने पूरे साल में ₹10 करोड़ का शुद्ध लाभ कमाया है और उसके कुल 1 करोड़ शेयर बाजार में ट्रेड हो रहे हैं।
तो EPS होगा: ₹10 करोड़ ÷ 1 करोड़ = ₹10 प्रति शेयर
इसका सीधा मतलब ये है कि कंपनी ने हर एक शेयर से ₹10 का मुनाफा कमाया है। यानी अगर आपने उस कंपनी का एक शेयर खरीद रखा है, तो आपकी हिस्सेदारी उस लाभ में ₹10 की है।
यह आंकड़ा निवेशकों के लिए बहुत ज़रूरी होता है क्योंकि इससे पता चलता है कि कंपनी कितना कमा रही है और उस कमाई का कितना हिस्सा एक शेयरहोल्डर को मिल रहा है। आमतौर पर EPS जितना ज़्यादा होता है, कंपनी उतनी ही फायदेमंद मानी जाती है।
एक बात ध्यान देने वाली है कि EPS निकालते समय Net Profit में से टैक्स और सभी ज़रूरी खर्च घटाए जाते हैं। अगर कंपनी ने Preferential शेयरधारकों को कोई डिविडेंड दिया है, तो उसे भी घटाकर आम शेयरधारकों के लिए EPS निकाला जाता है।
इसलिए EPS सिर्फ एक नंबर नहीं, बल्कि वह संकेत है जिससे आप यह तय कर सकते हैं कि कंपनी में निवेश करना कितना समझदारी भरा फैसला हो सकता है।
4. EPS क्यों महत्वपूर्ण होता है?
जब कोई निवेशक किसी कंपनी में पैसे लगाने की सोचता है, तो उसका पहला मकसद होता है — मुनाफा कमाना। लेकिन यह मुनाफा कैसे समझें? सिर्फ शेयर की कीमत देखकर हम ये नहीं तय कर सकते कि कंपनी फायदेमंद है या नहीं। यहां पर EPS यानी Earnings Per Share एक बहुत ही जरूरी भूमिका निभाता है। यह आंकड़ा हमें यह दिखाता है कि कंपनी अपने हर शेयरधारक को प्रति शेयर कितना लाभ पहुंचा रही है।

EPS की मदद से हम यह जान सकते हैं कि कंपनी की कमाई स्थिर है या घट रही है, और क्या वह भविष्य में भी अच्छे रिटर्न देने में सक्षम है। यह एक ऐसा संकेतक है जो किसी भी कंपनी की Financial Health और प्रदर्शन को बताता है।
आइए, अब इसे कुछ मुख्य बिंदुओं के ज़रिए समझते हैं।
1. प्रति शेयर मुनाफे की जानकारी देता है
EPS यह दर्शाता है कि कंपनी ने एक तय समय में अपने हर एक शेयर पर कुल कितना लाभ कमाया। यह शेयरधारकों को उनकी हिस्सेदारी की वास्तविक कमाई दिखाता है।
2. EPS जितना ज़्यादा, उतनी Profitable कंपनी
उच्च EPS यह संकेत देता है कि कंपनी की वित्तीय स्थिति मज़बूत है और वह अपने निवेशकों को अच्छा रिटर्न दे रही है। ऐसे शेयर लंबे समय में लाभदायक साबित हो सकते हैं।
3.निवेश के फैसलों में मदद करता है
EPS के आधार पर निवेशक तुलना कर सकते हैं कि कौन-सी कंपनी ज़्यादा मजबूत है। दो कंपनियों की कीमतें एक जैसी हो सकती हैं, लेकिन जिसकी प्रति शेयर कमाई ज्यादा है, वह बेहतर विकल्प मानी जाएगी।
4. अन्य फाइनेंशियल रेशियो से जुड़ाव
EPS का उपयोग कई महत्वपूर्ण अनुपातों में होता है, खासकर P/E Ratio (Price to Earnings Ratio) में। यह रेशियो बताता है कि शेयर की वर्तमान कीमत, उसकी कमाई के मुकाबले कितनी उचित है।
5. कंपनी की ग्रोथ और परफॉर्मेंस का संकेत
अगर EPS समय के साथ लगातार बढ़ रहा है, तो इसका मतलब है कि कंपनी अच्छा प्रदर्शन कर रही है और उसकी ग्रोथ की संभावनाएं मज़बूत हैं।
इसलिए EPS सिर्फ एक नंबर नहीं, बल्कि एक ऐसा संकेतक है जो कंपनी के मुनाफे, मूल्य और भविष्य की स्थिरता के बारे में बहुत कुछ बताता है। एक समझदार निवेशक के लिए EPS को नजरअंदाज करना किसी बड़ी गलती से कम नहीं है।
5. High EPS vs Low EPS
जब आप किसी कंपनी के शेयर में निवेश करने की योजना बनाते हैं, तो EPS यानी Earnings Per Share को देखना एक जरुरी कदम है। सामान्य तौर पर, यह माना जाता है कि जिस कंपनी का EPS ज़्यादा होता है, वह बेहतर प्रदर्शन कर रही है और Profitable है। वहीं, Low EPS को कमाई के लिहाज़ से कमज़ोर समझा जाता है। लेकिन क्या सिर्फ EPS देखकर ही किसी कंपनी में निवेश करना समझदारी है?
वास्तविकता यह है कि सिर्फ EPS देखकर निवेश करना अधूरी जानकारी के आधार पर फैसला लेना होता है। EPS भले ही किसी कंपनी की लाभदायक स्थिति को दर्शाए, लेकिन सिर्फ EPS कंपनी की पूरी स्थिति नहीं दिखाता। सही निवेश निर्णय लेने के लिए EPS के साथ अन्य कई फाइनेंशियल फैक्टर्स को भी ध्यान में रखना जरूरी है।
इन सभी फाइनेंशियल फैक्टर्स को हम आने वाले लेखों में विस्तार से समझाएंगे। इसलिए Share Market Guruji से जुड़े रहें — सब्सक्राइब करें और नोटिफिकेशन ऑन करें ताकि आप कोई भी जरूरी जानकारी मिस न कर दें।
चलिए, अब इसे थोड़ा और अच्छे से समझते हैं।
1. High EPS क्या बताता है?
यदि किसी कंपनी का EPS हाई है, तो यह दर्शाता है कि कंपनी प्रति शेयर अच्छी कमाई कर रही है। ऐसे शेयर आमतौर पर निवेशकों के लिए आकर्षक होते हैं क्योंकि वे मुनाफा देने की क्षमता रखते हैं।
2. Low EPS का क्या मतलब होता है?
Low EPS का मतलब यह नहीं कि कंपनी खराब है, बल्कि हो सकता है कंपनी ग्रोथ के शुरुआती फेज़ में हो या हाल ही में भारी निवेश किया हो। कई बार तेजी से बढ़ती कंपनियों की EPS शुरुआत में कम होती है लेकिन भविष्य में वे जबरदस्त ग्रोथ दिखाती हैं।
3. सिर्फ EPS देखना क्यों गलत है?
EPS एक सीमित जानकारी देता है। अगर कंपनी का EPS हाई है लेकिन उस पर बहुत कर्ज है, या मैनेजमेंट कमजोर है, या मार्केट में उसका स्थान गिर रहा है — तो ऐसा निवेश जोखिम भरा हो सकता है।
4. किस बात पर ध्यान देना चाहिए?
EPS के साथ-साथ आपको कंपनी की Revenue Growth, Debt-to-Equity Ratio, Profit Margins, Industry Position, और Management Quality जैसी चीज़ें भी देखनी चाहिए। इससे आपको कंपनी की असली ताकत और भविष्य की संभावनाएं समझ में आएंगी।
6. Diluted EPS क्या होता है? – What is Diluted EPS
Diluted EPS, EPS का एक ऐसा तरीका होता है जो कंपनी की भविष्य में बढ़ सकने वाली शेयरों की संख्या को ध्यान में रखकर निकाला जाता है। जब किसी कंपनी के पास ऐसे फाइनेंशियल Instruments होते हैं जिन्हें भविष्य में शेयरों में बदला जा सकता है — जैसे कि Convertible Debentures, Stock Options, Warrants या Preference Shares — तो ऐसे मामलों में सिर्फ EPS देखना निवेशक को अधूरी जानकारी दे सकता है। इसीलिए Diluted EPS का इस्तेमाल किया जाता है ताकि कंपनी की Per-Share Earning की अधिक वास्तविक स्थिति सामने आ सके।

Diluted EPS यह मानकर चलता है कि यदि कंपनी के सभी संभावित परिवर्तनीय उपकरणों को शेयर में बदल दिया जाए, तो कुल शेयरों की संख्या कितनी हो जाएगी। और फिर उस बढ़ी हुई संख्या के आधार पर प्रति शेयर की कमाई दोबारा Calculate की जाती है।
आइए इसे एक उदाहरण से समझते हैं।
मान लीजिए किसी कंपनी का Net Profit ₹50 करोड़ है और उसके 10 करोड़ शेयर हैं। तो
Basic EPS = ₹50 करोड़ ÷ 10 करोड़ = ₹5 प्रति शेयर
लेकिन मान लीजिए कंपनी ने 1 करोड़ Stock Options और 2 करोड़ Convertible Debentures जारी किए हुए हैं, जिन्हें भविष्य में शेयर में बदला जा सकता है।
तो अगर ये सारे कन्वर्जन हो जाते हैं, तो कुल शेयर हो जाएंगे।
10 करोड़ + 1 करोड़ + 2 करोड़ = 13 करोड़
अब Diluted EPS होगा।
₹50 करोड़ ÷ 13 करोड़ = ₹3.85 प्रति शेयर (लगभग)
यह आंकड़ा दिखाता है कि यदि सभी संभावित शेयर जारी हो जाते हैं, तो प्रति शेयर कमाई घटकर ₹5 से ₹3.85 रह जाएगी।
इसलिए Diluted EPS का मकसद निवेशकों को यह बताना होता है कि Worst-Case Scenario में उन्हें प्रति शेयर कितना फायदा मिल सकता है, ताकि वे ज्यादा सटीक निर्णय ले सकें।
7. EPS और शेयर की कीमत का संबंध
EPS यानी Earnings Per Share, किसी कंपनी की प्रति शेयर कमाई को दिखाता है। ये आंकड़ा जितना सीधा लगता है, उतना ही असरदार भी होता है — खासकर जब बात शेयर की कीमत की हो। दरअसल, EPS का सीधा असर कंपनी के शेयर प्राइस पर पड़ता है, और यही वजह है कि निवेशक इसे बड़े ध्यान से देखते हैं।
अगर किसी कंपनी का EPS लगातार बढ़ रहा है, तो इसका मतलब है कि कंपनी अच्छा मुनाफा कमा रही है। निवेशकों को यह भरोसा होता है कि कंपनी मजबूत है और भविष्य में भी अच्छी कमाई करेगी। इसी भरोसे के चलते लोग उस कंपनी के शेयर खरीदना शुरू कर देते हैं, जिससे शेयर की डिमांड बढ़ती है और उसी के साथ उसकी कीमत भी ऊपर जाने लगती है।
वहीं दूसरी ओर, अगर किसी कंपनी का EPS घटता है, तो यह निवेशकों को संकेत देता है कि कंपनी की कमाई में गिरावट आ रही है। ऐसे में कई लोग अपने शेयर बेचने लगते हैं ताकि नुकसान से बचा जा सके। जब बिकवाली बढ़ती है, तो शेयर की डिमांड घटती है और उसका असर सीधे प्राइस पर पड़ता है — यानी शेयर की कीमत गिरने लगती है।
इसलिए EPS और शेयर प्राइस के बीच सीधा संबंध होता है। EPS बढ़ेगा तो कीमत बढ़ने की संभावना ज्यादा होती है, EPS घटेगा तो कीमत पर नेगेटिव असर पड़ता है। इसी कारण EPS को कंपनी की आय और वित्तीय स्थिति को समझने का एक मजबूत पैमाना माना जाता है, जो निवेशकों को सही निर्णय लेने में मदद करता है।
8. निष्कर्ष
शेयर बाजार में समझदारी से निवेश करने के लिए सिर्फ शेयर की कीमत जानना काफी नहीं होता — असली समझ तो तब आती है जब आप EPS जैसे मूलभूत फाइनेंशियल संकेतकों को सही तरीके से पढ़ना और समझना जानते हैं। EPS यानी Earnings Per Share, यह बताता है कि किसी कंपनी ने अपने हर एक शेयर पर कितना मुनाफा कमाया है। यही आंकड़ा निवेशकों को कंपनी की वास्तविक कमाई और उसकी वित्तीय स्थिति की एक पारदर्शी स्थिति दिखाता है।
EPS की गणना करना आसान है — Net Profit को बाजार में उपलब्ध कुल शेयरों की संख्या से भाग देकर यह आंकड़ा निकाला जाता है। लेकिन इसका महत्व इससे कहीं ज़्यादा है। EPS न केवल किसी कंपनी की वर्तमान स्थिति दर्शाता है, बल्कि भविष्य की संभावनाओं का भी संकेत देता है।
High EPS यह दिखाता है कि कंपनी लगातार अच्छा प्रदर्शन कर रही है, जबकि Low EPS संभावित जोखिम की ओर इशारा कर सकता है। हालांकि, EPS को कभी अकेले देखकर निवेश नहीं करना चाहिए। कंपनी की ग्रोथ, कर्ज, प्रबंधन की गुणवत्ता और मार्केट पोजिशन जैसे कई अन्य फैक्टर्स को भी साथ में समझना जरूरी होता है।
Diluted EPS भी एक अहम पहलू है, जो भविष्य में शेयरों की संभावित बढ़ोतरी को ध्यान में रखकर एक अधिक यथार्थपूर्ण तस्वीर देता है। इससे निवेशकों को यह जानने में मदद मिलती है कि यदि कंपनी के सारे Convertible Securities शेयरों में बदल जाएं, तो उनकी प्रति शेयर कमाई कितनी रह जाएगी।
EPS और शेयर की कीमत का संबंध भी बहुत गहरा होता है। जब EPS बढ़ता है, तो निवेशकों का भरोसा भी बढ़ता है और शेयर की डिमांड के साथ उसकी कीमत में उछाल आता है। वहीं EPS में गिरावट शेयर की कीमत को गिरा सकती है।
अंत में कहें तो EPS कोई साधारण आंकड़ा नहीं, बल्कि एक ऐसा सूचक है जो आपको यह समझने में मदद करता है कि आप जिस कंपनी में निवेश करने जा रहे हैं, वो वाकई में आपके निवेश के लायक है या नहीं। अगर आप वाकई एक स्मार्ट और लॉन्ग टर्म निवेशक बनना चाहते हैं, तो EPS को समझना और उसका सही उपयोग सीखना बेहद जरूरी है।
9. Disclaimer
यह लेख केवल शैक्षिक और जानकारी प्रदान करने के उद्देश्य से लिखा गया है। इसमें दिए गए सभी आंकड़े, उदाहरण और व्याख्याएं सामान्य समझ बढ़ाने के लिए हैं, न कि किसी प्रकार की निवेश सलाह के रूप में। शेयर बाजार में निवेश करना जोखिम से भरा हो सकता है, और किसी भी कंपनी का EPS, P/E Ratio या अन्य वित्तीय संकेतक अकेले यह तय नहीं करते कि वह कंपनी निवेश के लिए उपयुक्त है या नहीं।
पाठकों को सलाह दी जाती है कि किसी भी निवेश निर्णय से पहले वे अपने वित्तीय सलाहकार (Financial Advisor) या सेबी-रजिस्टर्ड एक्सपर्ट से सलाह अवश्य लें। इस लेख में बताए गए विचार लेखक के निजी अनुभव और Research पर आधारित हैं, और यह किसी विशेष स्टॉक, ब्रोकरेज या निवेश योजना का समर्थन नहीं करता।
लेख में उल्लेखित किसी भी जानकारी पर आधारित निवेश करने से होने वाले लाभ या हानि के लिए लेखक या Share Market Guruji उत्तरदायी नहीं होगा। कृपया सोच-समझकर और अपने जोखिम पर निर्णय लें।
10. FAQs (Frequently Asked Questions)
1. EPS का फुल फॉर्म क्या होता है?
EPS का फुल फॉर्म है Earnings Per Share। हिंदी में इसका मतलब है – प्रति शेयर कमाई, जो यह बताता है कि कंपनी ने हर एक शेयर से कितना मुनाफा कमाया।
2. EPS निवेशकों के लिए क्यों जरूरी होता है?
EPS यह दर्शाता है कि कंपनी कितना मुनाफा कमा रही है और वह मुनाफा हर शेयरधारक तक कैसे पहुंचता है। इससे निवेशक यह तय कर पाते हैं कि कंपनी फायदे में है या नहीं।
3. क्या सिर्फ High EPS देखकर निवेश करना सही है?
नहीं, केवल High EPS के आधार पर निवेश करना अधूरी जानकारी पर आधारित होता है। EPS के साथ कंपनी की ग्रोथ, डेब्ट, इंडस्ट्री पोजिशन और मैनेजमेंट को भी देखना जरूरी होता है।
4. Diluted EPS क्या होता है और यह कब इस्तेमाल होता है?
Diluted EPS तब निकाला जाता है जब कंपनी के पास Convertible Securities जैसे Stock Options, Debentures आदि होते हैं। यह EPS की एक ज्यादा यथार्थपूर्ण तस्वीर देता है।
5. EPS और शेयर प्राइस में क्या संबंध होता है?
EPS और शेयर प्राइस का सीधा संबंध होता है। अगर EPS बढ़ता है, तो शेयर की डिमांड और कीमत भी बढ़ सकती है। अगर EPS गिरता है, तो शेयर की वैल्यू कम हो सकती है।